Sunday, February 26, 2012

नादाँ दिल

बेज़ुबां दिल को कैसे समझाएं
कि ये बेपरवाह बन इश्क कर बैठा
अदा-ऐ-हुस्न कैसे समझाएँ इसे
कि  ये तो उसी हुस्न पर फ़िदा है

ना  इसे ज़माने कि फिक्र है अब
ना कोई शिकवा शिकायत हुस्न से
मशरूफ है ये एहसास-ऐ-मोहब्बत में
मगरूर  है अपने कलाम-ऐ-इश्क पर

क्या खबर इसे कि हुस्न ठहरा  हुस्न
ज़माना है उस हुस्न का दीवाना
हुस्न ता उम्र ना हुआ किसी का
ना कोई रहा ता उम्र उसका दीवाना

कहा कई दफा हमनें इस नादाँ से
गम-ऐ-गफलत से आशिकी ना कर
देख मेरे मेहबूब की मासूमियत
देख उसकी नज़र में वफ़ा की अहमियत


लोकतंत्र का निर्वाचन

है धूम चहुँ ओर जिसकी
है जिसका चर्चा हर दिशा में
लोकतंत्र में है जो महत्वपूर्ण
आया उस निर्वाचन का समय

पांच वर्षों में आता है एक बार
और जिससे चयनित होते हैं
तंत्र पर राज करने वाले नेता
जनता का पैसा खाने वाले नेता


आते हैं उम्मीदवार बन ये नेता
करते हैं हमको प्रणाम और  नमस्कार
पर चयनित नेता गायब होते हैं
गधे के सर से सिंग की तरह

निर्वाचन के समय सर झुका
मांगते हमसे समर्थन हैं
विजय के बाद तो उनके
दर्शन ही होते दुर्लभ हैं

लोकतंत्र के इस निष्पक्ष चुनाव में
मोल लगता है समर्थन का
कहीं धन तो कहीं बल का
अपरम्पार उपयोग होता है

देखता हूँ जब में जनता की ओर
लगता है जैसे अन्धों की हो सेना
सर झुका चिन्ह पर ठप्पा लगाते हैं
उसके बाद ये उसी चिन्ह पर रोते हैं


ये निर्वाचन समय करता मुझे
आश्चर्यचकित और अचंभित है
होता हर तरफ कर्म का भाषण है
और उसके बाद सन्नाटा पांच साल का

Tuesday, February 7, 2012

जीवनपथ

जीवनपथ पर चलता हूँ मैं
लिए हाथ में विष का प्याला
नहीं ज्ञात है अभी मुझे
अपने ही जीवन की माला

प्रेम प्रतिज्ञा से नहीं हुई है
प्रज्वलित मेरे मन की दीपमाला
प्रतिदिन अखंड रूप से जलती है
ह्रदय में आवेश की प्रचंड ज्वाला

जीवनपथ पर हूँ अग्रसर
लिए हाथ में विष का प्याला
शिव सी मूरत ना बन जाऊं
कहीं  पी कर ये जीवन हाला

पथ कठिन है बाधाएं अप्रतिम हैं
कहीं छलक ना जाए आवेश की ज्वाला
संभल संभल कर चलता हूँ मैं
बन कर इस विष का रखवाला

जीवनपथ पर चलता हूँ मैं
लिए हाथ में विष का प्याला
हर पथ पर मोड अनेक हैं
हर मोड पर प्रज्वलित है ज्वाला

हृदयनाद से गूँज रही है
मेरे जीवन की हर शाला
आवेश की प्यास बुझाने को
कहीं पी ना जाऊं विष का प्याला 

चंद जवाब, महफ़िल में उठे सवालों के

चंद शेर जो महफ़िल में कहे और चंद जो रह गए अनकहे, उनको पेश करता हूँ आपकी नज़र-ऐ-इनायत के लिए

खामोश जुबां से जो उनका नाम लेते हो
अपने होंठों के चिलमन से उसे छुपाए जाते हो
गर ये जज्बा-ऐ-दिल निगाहों से बयाँ करते
तो हया के नूर से सजे एक चाँद लगते
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उनके आने की आहट पर यूँ धड़कने ना बढाओ
कि उन्हें देख कहीं धड़कने थम ना जाएँ
ज़रा काबू में लो इन तेज साँसों को
कि कहीं उन्हें तुम्हारी बेताबी का इल्म ना हो जाए

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प्यार का गर दुनिया को इल्म होता
तो जहाँ में शिरी-फरहाद का अलग मुकाम होता
ना कर यूँ शिकवा अपने फनाह होने का
कि इश्क पर फनाह मजनू को दीवाना कहते हैं
गर है अपने प्यार पर एतबार
तो उठ ऐ आशिक, अपने प्यार को रुसवा ना कर

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तसव्वुर-ऐ-एहसास को नजराना गर कहते हो
तो हर रात हमारी नज़रानो से घिरी है
गर नाज़-ऐ-उल्फत का पैमाना निगाहों में लिए बैठे हो
तो हर महफ़िल हमारी मयखाने में सजी है
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कोई इन धडकनों से कह दो कि ये आवाज़ ना करें
कि इनको आवाज़ से उनके क़दमों कि आहट नहीं सुनती
कोई इन साँसों से तो कह दो कि ये रफ्ता रफ्ता ही चले
इनकी तेजी में उनके इस ओर रुख करने कि महक नहीं आती
हमारी निगाहों से कोई तो पलकों का चिलमन उठा दो
कि उस चिलमन से हमारी निगाहों की हया बयाँ नहीं होती


Monday, February 6, 2012

कतऐ तालुक

खबर की खबर आई कुछ ऐसी खबर
परेशाँ हुए हम ना हुई तुमको ये खबर
सोच कर तन्हा होगी तुम्हारी नज़र
खामोश रहे हम यूँ शाम-ओ-सहर

ना इल्म था हमें कि ये खामोशी
दफ्न कर देगी हमारी चाहत
फिकरे कसेंगे, कसीदे भी कहेंगे
जहाँ वाले हमे बेगैरत भी कहेंगे

सह गए हम हर सितम यह सोचकर
कि बेखयाली में भी तुझसे शिकवा ना करेंगे
क्या इल्म था हमें कि अब ता उम्र
तेरी  नज़रों में हम बेवफा रहेंगे

प्रकृति

नीले अम्बर में चहकते पाँखी
झील की गहराइयों में तिरती मछलियाँ
घने वन में विचरते ये जीव जानवर
हैं स्वतंत्रता का एक जीवित स्वरुप 
भोर भये पूरब से उगता सूरज
रात चाँदनी बिखराता चन्द्रमा
बलखाती बेलों पर लटकते फूलों की महक
हवा के झोंकों में इठलाती पंखुडियाँ
प्रकृति का हर प्रकार, हर आकार
समय की धारा में गतिमान हैं
प्रत्यक्ष रूप से तुम देखो तो
उसमें खुद परमात्मा विराजमान हैं

चुनिन्दा दर्द भरे शेर

तूफां में कश्ती छोड़ किनारों का आसरा ना ढूंढ
लड़ मजधार के तूफानों से कश्ती किनारे पर मोड

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साथ गर तू देगा खुदका तो खुदा तेरे साथ होगा
मजधार के भंवर से गर लड़ेगा तो किनारा तेरे पास होगा

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ऐसे अल्फाज़ ना कहो कि अभी मैं जिंदा हूँ 
तेरे दिल में बसने का ख्वाहिशमंद खुदा का बंदा हूँ
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 नगमें उनकी बेफवाई के लिख रहा हूँ आज
कि दर्द-ऐ-दिल से तन्हाई  को रुसवा कर रहा हूँ
ना जाने कि कदर ये नगमें सजेंगे सुर-ओ-ताल पर
ना जाने हम क्या करेंगे तन्हाई  के आगोश में 
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हमें संगदिल, बेदर्द कहे जाता है आज ये ज़माना
अरे कोई उनकी और तो देखो जो हमारा दिल तोड़ बैठे हैं
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मुड  कर उन्होंने देखा कुछ इस कदर हमें 
कि होंश फाक्ता हुए और हम दीवाने बन गए
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दफ्न कर गए हो आज हमारी आरजुओं को 
और बदले में दे गए हो एक ग़मगीन पल हमें
ना चाह कर भी अब मुस्कुराना पड़ता है कुछ इस कदर
कि ज़माने को ये इल्म ना हो की हम गुमशुदा हैं 
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अल्फाज निकले हैं आज हमारे बेज़ार दिल से उनके लिए
कि ए खुदा रखना तू उन्हें बेगार इस ज़माने की रुसवाई से
क्या हुआ जो वो हमारी मोहब्बत का पैगाम ना पढ़ सके
उन्हें तू उनकी मोहब्बत के अंजाम तक जरूर ले जा



Sunday, February 5, 2012

चंद अल्फाज़ गम-ऐ-बेखुदी के

उनकी मंजिलों में अपनी राहें ढूंढता फिरता हूँ
एक फकीर हूँ मैं चिरागों में रौशनी ढूँढता हूँ
गर मेरे रकीब से पूछोगे कि किस राह गुज़रा हूँ मैं
तो पाओगे की अपनी ही कब्र में बसेरा ढूँढता हूँ मैं

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तवज्जो ना कर किसी की किनारे बैठ कर
गर हिम्मत है तो मजधार में कश्ती उतार
किनारे बैठ राह उनकी यूँ तक रहे हो
खुदाया ना करे की वो कश्ती में हो सवार
यूँ तुम बैठ उम्र अपनी गुज़ार दो इस कदर
और वो हो कि मजधार में परेशाँ हों

Friday, February 3, 2012

खुदाया

तन्हाईयों के दायरे में
जब हुआ खुदा से दीदार
हमनें पूछा क्यों खुदाया
क्या सोच तुने बनाया जहाँ
गर बनाया ये जहाँ
तो  क्या सोच तुने
इंसान को मोहब्बत करना सिखाया
क्या सोच कर तुने
इस इंसान का दिल बनाया
गर इसे जज्बातों में घेरना ही था
तो क्या सोच तुने
इस इंसान का दिमाग सजाया
तन्हाईयों के दायरे में
जब हुआ खुदा से दीदार
तो  खुदा बोला कुछ ऐसे
कि सुन ऐ आदम जात
मैंने तो बनाया था जहाँ
सोच कर की सब साथ रहेंगे
मैंने बनाया था इंसान
अपनी एक हँसीं सोच के चलते
क्या जानता था की ये नादान
कर बैठेगा एक नादानी
दिमाग को छोड़कर ये
लगा बैठेगा दिल्लगी
मोहब्बत कर ही मैंने
इंसान को बनाया था
क्या जानता था की ये इंसान
बदजात मोहब्बत कर बैठेगा!!

Thursday, February 2, 2012

Wild thoughts

Sitting through the meeting
My heart was lonely & seething
as it was all sad and sorry
for what's not world's worry

first it was your thought
then your figure in my mind
your sweet voice in my ears
echoing as those wind chimes

All that I was able to gather
was my heart and soul together
trying to gallop away from crowd
and get as far as you live