है ग़मगीन बहुत आलम-ऐ-ज़िन्दगी
फिर भी कर रहे हम खुदा कि बंदगी
कि खुशियाँ वो मेरे दामन में भर दे
कि मुस्कराहट वो तेरे चेहरे पर भर दे
गम के इस आलम में तो हम जी लेंगे
ग़मों से भरे ज़िंदगी के कसीदे भी पढ़ लेंगे
कि गर तुम एक बार मुस्कुरा दो ऐ हंसीं
हम दर्द को अपने सीने में ही दफ़न कर लेंगे
ग़मगीन गर आलम है तो ऐ हंसीं
एक बार जरा मुस्कुरा आलम को हंसीं कर
अपने जेहन में दबी हस ख़ुशी को तू
अपनी मुस्कराहट से एक परवान कर
है ग़मगीन बहुत आलम-ऐ-ज़िन्दगी
कि इंतज़ार है इन्हें भी तेरी मुस्कराहट का
ग़मों से भरे इस आलम में गर तू मुस्कुरा दे
तो ऐ हंसीं इस गम को हम दवा समझ पी लेंगे||
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