दिल दहला देने वाली घटना पर
अज़ाब-ऐ-अश्क भी सूख गए
आँखों में नमी तो है
पर अश्क बह नहीं सके
इतना दर्दनाक मंजर देख
शब्द भी हलक में अटक गए
होंठों पर लफ्ज़ आते आते
जुबां पर ही सहम गए
नादां परिंदे आशियाँ से उड़े थे
किसी पिंजरे में फंस गए
निशाना बने किसी दरिंदगी का
जिहाद की भेंट चढ़ गए
क्या खता थी उनकी
किससे था उनका बैर
कि ढूंढ ढूंढ मारा उन्हें
ना आयी दरिंदो को शर्म
क्या यही चाह था खुदा ने
क्या यही है उसकी इबादत
क्या यही है अमन का पैगाम
कि नादाँ परिंदों का करो कत्लेआम
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