उम्मीद्दों के सहारे जिए हम
आज हमें नाउमीदी ने है घेरा
दामन तेरा पकड़ कर जिए हम
आज तेरे दामन की राह में है डेरा
ना कोई उम्मीद है हमें आज ज़िन्दगी से
ना ज़िन्दगी ने जगाई कोई उम्मीद
बस मायूसी है छाई चारो ओर
एक सन्नाटा है हमें सुनाई देता
जहाँ में आये थे बड़ी उम्मीदें लेकर
आज नाउम्मीदी का है सहारा
साथ तेरा बस चाहा था हमने
लेकिन तूने ही कर दिया बेसहारा
कैसे जियें हम अब इस जहाँ में
किससे करें हम शिकवा
खुदा का नूर समझ तुझे पाया था
आज तूने ही छीन लिया हमारा अक्स
उम्मीद्दों के सहारे हम जिए थे
बड़ी उम्मीदों से थामा था तेरा दामन
छुडा दमन अपना यूँ ना जा
यूँ सरे राह बेसहारा ना कर||
No comments:
Post a Comment