Friday, August 21, 2015

पशोपेश

सामने मेरे इतना नीर है 
बुझती नहीं फिर भी मेरी प्यास है 
जग में बहती इतनी बयार है 
रुकी हुई फिर भी मेरी स्वांश है 

साथ मेरे अपनों की भीड़ अपार है 
फिर भी जीवन में एज शुन्य है 
चहुँ और फैला प्रकाश है 
फिर भी जीवन यूँ अंधकारमय है 

नहीं जानता जीवन की क्या मंशा है 
नहीं जानता और क्या मेरी चाह है 
सोच रहा आज मैं खड़ा हर दोराहे पर 
किस ओर किस डगर मेरी राह है 

आशा निराशा के बीच झूल रहा आह मैं 
पशोपेश में सोच रहा आज मैं 
किसका साथ आज दूँ मैं 
किसका हाथ पकड़ अपनी राह चुनू मैं

Thursday, August 20, 2015

धर्मनाश

बैठे सहर से सहम कर 
सोच रहे हैं अपने करम 
रहना है हमें इसी जहाँ में 
जहां बदलते हर कदम धर्म 

भूल कर जीता है इंसान 
इंसानियत का मूल धर्म 
उसका धर्म है सबसे ऊँचा 
पाल लिया है बस ये भ्रम 

प्यार मोहब्बत और जज़्बात 
नहीं है आज इनका कोई मोल 
धर्म के नाम पर यह भी कह दिया 
नहीं है ये दुनिया गोल 

धर्म के नाम पर आज इंसान 
बन गया है दुश्मन जहाँ का 
धर्म रक्षा के नाम पर 
रास्ता पकड़ लिया है धर्मनाश का 

भूल गया है आज इंसान 
धर्म से नहीं है उसका प्रारूप 
बोल गया है आज इंसान 
धर्म लेता है उसका ही रूप 

छोड़ साथ इंसानियत का 
बन गया है वो हैवान 
प्यार मोहब्बत इस इस दुनिया में 
फैला रहा वो अपना आक्रोश 

Tuesday, August 18, 2015

We Have Arrived

Wake up to the alarm of Time
We have arrived finally
Though we were just around here
But now we have arrived finally

We had given the zero to the world
But the world thought we were zero
We had given economics to the world
But the world thought ill of our economy

We were the nation of unity
But the world saw only diversity
Time and again we were attacked
The World only robbed us, being mighty

Now the time has come for us
To turn the tables and show them
Be it Economics or be it Science
We have proven that we have arrived

Long gone are the days we lived in shadow
Now we have reached the Mars
Not just that being our accomplishment
We have also launched satellites for them

Now is the time the Youth is geared up
Now is the time India has arrived
Long gone are the days we strived
Now are the days to be mesmerized

The World now has to gear up
To face the pace of India
Contained we were for ages
But Now We Have Arrived!!!

आधी रात में न्यायपालिका खुली

आधी रात में न्यायपालिका खुली 
लगी न्याय की बोली 
जनता वहां सो रही थी
खुली यहाँ  न्याय की पोथी 

एक आतंकी को बचाने 
आये धर्मनिरपेक्ष नाटक रचाने 
कितना धन कितना परिष्श्रम 
वो भी एक हत्यारे बचाने

यदि यही कर्म करने हैं 
तो खोल दो न्याय द्वार 
चौबीसों घंटे खोलो वो पोथी 
करो हर घडी हर पल न्याय 

अच्छे दिन आएँगे कहकर 
लगाईं थी तुमने पुकार 
अब उसको बनाकर हुंकार 
करोड़ो को दिलवाओ न्याय 

एक आतंकी के लिए जब 
खुले आधी रात को द्वार 
 मत बंद करो तुम उनको 
दो एक सा व्यवहार सबको 


धर्मनिरपेक्ष गुलाम

कहते हैं वो टोपी पहनते हैं 
जा कर दुआ सलाम करते हैं 
क्या बदल सकते हैं का इतिहास 
क्या करा सकते हैं सच का आभास

चेहरा सच का देखने को कहते हैं
क्या खुद के सच से वो अवगत हैं 
धर्म संप्रदाय की बात करते हैं 
क्या अपने धर्म से  परिपूर्ण हैं 

इफ्तार में हम नहीं जाते 
वो कहते हमें सांप्रदायिक हैं 
टोपी हम नहीं पहनते 
वो कहते हमें काफ़िर है 

अरे मंदिर मस्जिद में अंतर नहीं है 
अंतर तुम्हारे अपने मन में है 
धर्म की राजनीति करते हो 
और हमें अधर्मी कहते हो 

मान लेते हैं हम तुम्हारी बात 
 कहेंगे हम भी ईद मुबारक साथ तुम्हारे 
बस एक बार मस्जिद में बैठ 
वो प्रसाद मोलवी को खिला दो

अरे धर्मनिरपेक्षता के गुलामों 
चलो साथ कदम से कदम मिला
यदि मस्जिद का फतवा मानते हो 
तो जरा गीता का भी मान कर लो!!


Are We Independent

From morning till evening
We slog to make living
From night to dawn
We spend time Dreaming

Hope is the word we rely on
Time is what we con
Everyday & every night
We try to gather our might

Still we are someone's slave
Though we try to be brave
Knowing that we end in grave
We still try our best to be brave

We serve for family
But, that's not our slavery
We serve in our community
But that doesn't bring the calamity

Still we are born to be slave
Slave to those who make matters grave
Those who rule the way we think
Those who rule the way we wink

We are slaves to the Politicians
We are slave to the Mathematicians
We are slave of these abnormals
Who tend to show they solve our problems

Media is another one to enslave us
They serve their poison to us
Yet we think we are independent
Though we wear their thought pendant

We are independent only in our thoughts
Yet our life is a symbol of slavery
Slaves is what we would be
Till we decide to break the boundary!!!

Sunday, August 9, 2015

खामोशियाँ

खामोशियाँ मेरी पहचान है 
कहीं दूर लफ़्ज़ों की दूकान है 
पथ्थर से सर्द आज मेरे होंठ हैं 
जुबां भी अब बेजान है 

ये ज़िन्दगी जिस मोड़ पर है 
खामोशियों में ही मेरी आवाज़ है 
दफ़न है आज दर्द भी 
हर मोड़ पर तेरी याद है 

खामोशियाँ आज मेरा अक्स हैं 
खामोशियों से ही मेरी पहचान है 
पर ना काने  है ये नादान दिल मेरा 
ढूंढता है तुझे देख अक्स तेरा 

ना जा अब तू दूर मुझसे 
कि खो देंगे हम खुद को खुदसे 
खामोशियों से भरी ये  ज़िन्दगी 
कहीं समा जाएगी खामोशियों में ॥