बैठ मदिरालय मैं अज्ञानी मैं
कर रहा ज्ञान वर्धन
इतने ज्ञानी यहाँ मिले हैं
नहीं ज्ञान को बंधन
दो घूँट मदिरा के उतार हलक से
कर रहा मैं क्रीडा
आज जान वर्धन करना है
उठाया है मैंने ये बीड़ा
जीवन की घनघोर घटा से
जिस असमंजस में घिरा
ज्ञान अर्जन कर उस घटा से
आज करना है मुक्त जीवन बंधन
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