श्रृंगार कर जब तू आयी दुल्हन का
धड़कन थम गई मेरे ह्रदय की
लगा उस पल मानो थम गया था समय
रुक गया था श्रिष्टी का भी चक्र
लाल चुनर ओढ़े जो तुम खडी थी
दर पर सिमटी शरमाई सी
कोलाहल हुआ अंतर्मन में
हर ओर सुना मैंने बस एक ही शोर
रूपवती गुणवती खडी सामने मेरे
यही है मेरी जीवन की चितचोर
पल कुछ वो ऐसा गूँथ गया मन में
कि ना भूल सकता हूँ मैं उसे कभी
देखा था तुझे मैंने पहले भी कई बार
पर पल था वो जब तू लगी जीवन की चितचोर।।
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