Wednesday, June 18, 2014

कहत नसीबा

कहत नसीबा नहीं कोई रस्ता
नहीं कहीं कोई साथी तेरा
दूर दूर तक देख चल तू
नाप अपनी ज़िन्दगी की रहे

ना है कोई राह जन्नत को
ना कोई नज़र दोजख की
चलना है अकेले तुझको
राह अपनी ज़िन्दगी की

कहत नसीबा नहीं को आसरा
तेरे आब-ऐ-तल्ख़ को
बहाना होगा खून-ऐ-जिगर
सरे राह तकल्लुफ सहकर

ना कोई तेरा है ना तू किसीका
ना तेरा कोई रब है, ना है कोई रकीब
तन्हा तू आया है, तन्हाई है तेरा साया
तन्हा तुझे चलना है, तन्हा ही है जाना

कहत नसीबा नहीं कोई रस्ता
नहीं कोई तेरा कहीं आसरा
आब-ऐ-तल्ख़ बहा तू तन्हा
कि तन्हाई ही है तेरा हमसफ़र, तेरा साया

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