छल कपट की दुनिया है
हर एक है दूसरे से आगे
बस कोई कह जाता है अपनी विपदा
कोई शांत सहता रहता है सर्वदा
स्वर ऊँचा कर कहते हैं जो
क्या दबा जाते हैं छल अपना
क्या अपने मीठे शब्दों में
कपट छुपा जाते हैं अपना
शांत कहीं कोई है जग में
तो नहीं उसके ये माने
कि उसका सच उसका कपट है
कि करता है वो हर पल छल
सहिष्णुता का गागर है उसमें
सह जाएगा शब्दों का विषधर
हर लांछन का होगा एक ही उत्तर
कि लांछन भी तो है जीवन सा नश्वर
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