Sunday, August 19, 2012

यादों की मय्यत

दिन ढले कहीं छाँव दिखती है
सूरज की तपिश से रहत मिलती है
शाम के समय कदम उठते हैं
घर को चलते हुए ये थमते हैं
कि कहीं दिल के किसी कोने में
याद तेरी मुझे सताती है
ठिठके से ये कदम यूँ मुडते हैं
कि राह छोड़ घर की मदिरालय ढूंढते हैं

दिन ढले कहीं जब शाम होती है
दिल में तेरी यादों की तड़प होती है
अब तो शराब से भी नाता ना रहा मेरा
कि कमबख्त भी तेरी ही अदा दिखलाती है
छोड़ ये नाते ये रिश्ते ये तसव्वुर की दुनिया
हम तो अपने ही घर को चले जाते हैं
जिस दिल में तेरी वो याद बसर करती थी
उसे सरे राह हम घायल किये जाते हैं

छोड़ ये नाते ये रिश्ते ये तसव्वुर की दुनिया
हम अपनी ही धुन में जिए जाते हैं
तेरे घर की राह हम भूल चुके हैं कब के
अब तो तेरी यादों की मय्यत सजाते हैं
दिन ढले जब शाम होती है 
हम दियों में तेरे अक्स जलाते हैं
दिल के जिस कोने में तेरी याद बसर करती थी
उस कोने में ही उन यादों पर हार चढाते हैं||

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