जब विचारों का अस्तित्व शब्दों में मिल गया हो
जब शब्दों का अस्तित्व सुरों में मिल गया हो
तब अपने अंतर्मन में दबी भावनाओं को मत दबाओ
कुछ क्षण का ही सही, कोलाहल सह जाओ
विचारों को आत्मघाती मत कभी बनाओ
कुछ क्षण ही सही, हाला तुम पी जाओ
शिव नहीं तुम कि शब्दों का विश्राम कर पाओ
कोई नागराज नहीं हिसार विश हलक में थाम पाओ
भावनाओं का बवन्डर यूँ हीं कभी थमता नहीं
कभी शब्द तो कभी पीड़ा उभरता है कहीं
कुछ क्षण ही सही, इस बवन्डर तो मत रोको
अपने अंतर्मन से निकालो इस कलह को
अपने विचारों को शब्दों को तनिक पिरोकर
कहीं कलाम से तो कहीं सुरों से तुम उभारो
मत रोको भावनाओं को द्वेष के डर से
कहीं यह डर ना मिला दे तुम्हें यमदूतों से!!
No comments:
Post a Comment