Friday, July 27, 2018

एक चाह

रुसवाई से रुखसत होने की हमारी चाह है 
आज क़यामत तक जीने की चाह है 
दोजख से फिर निकल आने की चाह है 
हमारी तन्हाइयों में तुमसे रूबरू होने की चाह है 

आब-ऐ-तल्ख़ से रुखसत की एक चाह है 
इश्क की खुमारी से निजात की एक चाह है 
ज़िन्दगी के स्याह पन्नो को जलाने की चाह है 
उनमें बसी तन्हाइयों में तुमसे रूबरू होने की चाह है 

निकल पड़े हैं हम सफर-ऐ-ज़िन्दगी पर 
हर मोड़ पर सिर्फ तुमसे मिलने की चाह है 
बेआबरू और बेगैरत बन निकले है सफर पर 
राह के हर दरख़्त तले तुमसे मिलने की चाह है 

ज़ुल्फ़ों में तुम्हारी उम्र बसर करने की गुजारिश लेकर 
तन्हाइयों में तुमसे रूबरू होने चले आये हैं 
बेआबरू और बेगैरत बन सफर पर निकल आये हैं 
ज़िन्दगी के सफर को तुम्हारी बाहों में ख़त्म करने आये हैं

Sunday, July 22, 2018

विचारों का अस्तित्व

जब विचारों का अस्तित्व शब्दों में मिल गया हो
जब शब्दों का अस्तित्व सुरों में मिल गया हो 
तब अपने अंतर्मन में दबी भावनाओं को मत दबाओ
कुछ क्षण का ही सही, कोलाहल सह जाओ

विचारों को आत्मघाती मत कभी बनाओ
कुछ क्षण ही सही, हाला तुम पी जाओ 
शिव नहीं तुम कि शब्दों का विश्राम कर पाओ
कोई नागराज नहीं हिसार विश हलक में थाम पाओ

भावनाओं का बवन्डर यूँ हीं कभी थमता नहीं
कभी शब्द तो कभी पीड़ा उभरता है कहीं
कुछ क्षण ही सही, इस बवन्डर तो मत रोको
अपने अंतर्मन से निकालो इस कलह को 

अपने विचारों को शब्दों को तनिक पिरोकर
कहीं कलाम से तो कहीं सुरों से तुम उभारो
मत रोको भावनाओं को द्वेष के डर से
कहीं यह डर ना मिला दे तुम्हें यमदूतों से!!


Sunday, July 1, 2018

क्या कहें और कैसे कहें

क्या कहें और कैसे कहें
कि कहीं छुपा एक राज है
कहीं ज़ुबान पर आ गया 
तो खुदा समझ मेरे जज़्बात हैं 

कहीं किसी के नूर में 
छुपे हुए कुछ अल्फ़ाज़ हैं
कहीं हलक से सरक गए
तो खुदा समझ मेरे हालत हैं 

कि तकल्लुफ़ ना करना
मेरी रूह के दीदार का
कहीं दीदार गर हो भी जाए
तो आन-से-तल्ख़ समेट लेना 

अब फ़लसफ़ा क्या कहें
यही सच है ज़िंदगी का
आह भी गर उठ जाए ज़मीर की
खुदा से रूबरू हो ही लेना।