Friday, June 29, 2018

जीवनसंगिनी

धरा की धरोहर सा संजोया जिसे 
अंतर्मन में बसा आत्मा बनाया जिसे 
स्वयं को छोड़ अपनाया जिसे 
तुम्ही हो अर्धांगिनी मैंने बनाया जिसे 

परमात्मा के परोपकार से जो मिली 
धर्मात्मा के आशीर्वाद से जो मिली
अग्नि के साक्ष्य में जो मिली 
वही हो तुम तो मेरी जीवनसंगिनी बनी 

कहीं तुम्हारी सफलता ही है लक्ष्य मेरा 
जीवन द्वंद्व तो मात्र है समय का फेरा 
नहीं बनाने दूंगा मष्तिस्क की चिंताओं का डेरा 
सफल हो तुम यही ध्येय है मेरा 

चिंतन मनन में तो तुम मेरी संगिनी
तुम्ही हो जिससे है मेरी जीवन रागिनी 
कहीं दूर स्वप्न सा जो है दिखता 
वही है द्वार जिसमें मेरा विश्व है बसता 

संग मेरे ही तुम चलो सदा 
पथ कठिन होगा बनो तुम सहारा 
संग चलते हुए बल ही मिलेगा 
स्वप्न संग चलकर ही साकार होगा 

अंतर्मन में बसा आत्मा बनाया जिसे 
स्वयं को छोड़ अपनाया जिसे
अग्नि के साक्ष्य में जो मिली 
वही हो तुम तो मेरी जीवनसंगिनी बनी

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