जीवन द्वंद्व में लीन है मानव
ढूंढ रहा जग में स्वयं को
नहीं कोई ठोर इसका ना दिखाना
दूर है छोर, ढूंढने का है दिखावा
नहीं किसी को सुध है किसी की
अपने ही जीवन में व्यस्त है हर कोई
ढूंढ रहा है हर कोई स्वयं को
छवि से भी अपनी डरता है हर कोई
अपनों से भी परे है हर कोई
जीवन यापन की कला आज है खोई
दर्पण में ढूंढते हैं अपना प्रतिबिम्ब
प्रतिबिम्ब में ढूंढते है अपना अवलम्बन
दिखता नहीं जीवन का अर्थ कहीं
जीवन की गहराई में जीवन ढूंढता हर कोई
खोई आज नातों ने भी अपनी महत्ता कहीं
क्योंकि ढूंढ रहा आज स्वयं को हर कोई
नहीं ईश्वर के लिए भी आज समय
क्योंकि ढूंढ रहा आज स्वयं को हर कोई
दर्पण में ढूंढते हुए अपने प्रतिबिम्ब
जीवन द्वंद्व में लीन है आज हर कोई
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