नैनो की भाषा ना समझ पाए
ना समझ पाए उनके कुछ संकेत
अधरों से वो कुछ बोल ना पाए
हृदय को हमारे छू ना पाए
बढ़े थे जिस डगर पर साथ उनके
उसपर झुककर उन्हे संभाल ना पाए
एक छोर तक साथ चले वो हमारे
उसके आगे हम उन्हें थाम ना पाए
कुछ भाषा ना हम पढ़ पाए
कुछ शब्द वो बोल ना पाए
उनके सहारे चलना तो सीखा
किंतु साथ उनके हम चल ना पाए
पंछी बन उड़ चले वो गगन में
नाता हम उनसे जोड़ ना पाए
बरसों जिनसे प्रेम ही पाया
जीवन में उन्हें रोक ना पाए
आज भी जब देखते हैं उस छोर पर
अश्रुधारा ही बहती है नैनो से
कंठ से सवार नहीं निकलते हैं
जब स्मरण में उनकी छवि है आती।
1 comment:
मर्मस्पर्शी......!
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