Monday, August 29, 2016

Game of Love

Game of Love ain't made for me
for
It always brought me down to knee
Something I could never flee

Even if I loved with my heart
My aim was never right as dart
Agony in love was what had its base
Success was never my case

Pain was the word on my lip
Blood is what I had in every sip
I wanted to be loved always
But love had to depart its ways

Tried my level hard and fast
But could never help on my past
It was my past that's the culprit
Causing agony and fate's misprint

Though Here standing now all alone
Where whom I loved is gone
Dunno how would I play this game
Where I could achieve nothing but shame

हृदय पीड़ा


हृदय पर तेरे शाब्दिक बाण के घाव लिए
इस संसार में यूँही भटकते रहते हैं
हृदय में लिए तुझसे बिछड़ने की पीड़ा
आज जीवन जीने की कला सीख रहे हैं

तुम मरने की क्या बात कर रहे हो
यहाँ कितने हृदय में पीड़ा लिए जीते है
जीवन का हलाहल पी जीते है
अपनो से बिछड़ने का विश पी रहते हैं

तुम क्या कुछ कर सकते थे, तुम कर चुके
अब शाब्दिक बाणों से खेलते हो
हृदय पीड़ा तुम क्या जान सकोगे
जब ख़ुद पीड़ा सहने से डरते हो

यहाँ हर वक़्त हर पीड़ा सह कर जीते हैं
तेरे हर शब्द सुन चुप रहते हैं
ना जाने कौन किसे कह गया
कि अब तेरे ही आने की राह तकते हैं।।

Poem composed with a very wayward line of thoughts!!

ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा

ता ज़िन्दगी मैं खामोश रहा
खामोश दर्द में जीता रहा
क़ि सोचता था कभी ज़िन्दगी में
मैं हाल-ए-दिल बयां करूँगा

सुनते सुनते होश खो गए
हाल-ए-दिल बयां ना हुआ
दर्द अपनी हद से आज़ाद हुआ
फिर भी शब्द जुबां पर ना आए

आज सोचा था मेरे अपने होंगे
जो मुझमें एक इंसां देखेंगे
शायद वो मुझे समझेंगे
कभी बैठ साथ मेरी सुनेंगे

जब प्लाट देखा मैंने ज़िन्दगी को
पाया, ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा
खामोशियों में जीत रहा
कहने को अब, ना कोई मेरा अपना रहा।।

Monday, August 15, 2016

When in Life

When in life I wanted to convey
Lost I was for those thoughts
When I wanted to say something
Lost I was for those words

It was a paradigm shift for me
It was a sea of change
Lost I was to learn the way
You wanted me to convey

It is my love for you today
That holds me by the bay
It is my love for your being
That hold me from fleeing

It is all about love and care
That I wanted to convey and share
But you never showed that willingness
To listen to me with promptness

Whenever I wanted to convey
I never found my way
To be next to you my love
To be in your arms to say!!

जीवन द्विविधा

कहने को बहुत कुछ था
लेकिन सुनाते किसको
जिन्हें जीवन का आधार समझा
उन्होंने हमें कभी ना समझा

जिस दर पर आज हम हैं
उस दर को खोलेगा कौन
जिस राह हम चल रहे हैं
उसपर राहगुज़र बनेगा कौन

कहने को बहुत कुछ था
किन्तु आज सुनेगा कौन
करने को भरोसा तो है
किन्तु हमपर भरोसा करेगा कौन

इष्ट को अपने हम पूजते हैं
किन्तु हमारा इष्ट है कौन
जिसे जीवन की डोर सौंपी थी
उसे हमारा बनाएगा कौन

कहने को बहुत कुछ था
किन्तु उन्हें बताएगा कौन
संग उनके रहना चाहते हैं
किन्तु उन्हें मनाएगा कौन!!