Monday, March 28, 2016

नहीं तेरे लहू में वो रंग

लहू तेरा बहा है आज 
लुट रही कहीं तेरी अपनी लाज
नहीं किंतु तेरे लहू में वो रंग
नहीं उस लुटती लाज के कोई संग

कहीं दूर कोई धमाका हुआ
किसी का बाप, भाई, बेटा हताहत हुआ
छपा जैसे ही यह समाचार
गरमा गया सत्ता का बाज़ार  

नहीं तेरे लहू से इनको कोई सरोकार
नहीं तेरे लहू में मतों की झंकार
नहीं है तू कोई अख़लाक़ या रोहित
तेरी मृत्यु नहीं करती इन नेताओं को मोहित

देते हैं सम्प्रदाय का रंग ये लहू को
जब बोटी पर सेकते ये मतों की रोटी को
नहीं तेरे लहू में सम्प्रदाय का वो रंग
जो कर दे नेताओं की चीर निद्रा भंग।।



Monday, March 21, 2016

Pain of Humanity

 The day is lit with a torch
And
Sun has gone down the shade
For
The Violence has marred its march

Blood is shattered all across
Red is the color of even the moss
Culling humans is in the season
Death is drooling for this reason

The day is lit with the torch
For
The pen has started to scorch
And 
It has missed the beat of its march

Ink is spread on the floor
Thinking what pen is writing for
They call terrorist as martyr
Pen helps them in their satire

Sun is hiding now in the shades
For 
Terror strikes using even a spade
And
Human Rights are called to cover the fad

Blood is shattered on the grass
Politics has become terror's class
Culling humans is in the season
Politicians are minting on this reason

The day is lit with a torch
Culling humans is today's march
The pen has started to scorch
Death is now standing in the porch!!

Sunday, March 20, 2016

हृदयोदगार

चिंतन मनन की यह धरा थी
आज इसपर भी मंथन कर दिया
अनेकता में एकता की यह धरा थी
आज उसको भी तुमने तोड़ दिया

सागर मंथन से निकला विश पी
शिव शम्भु ने जग को तारा था
अब इस धरा मंथन का विश
कौन शिव बन पी पाएगा

उस युग में तांडव कर
शिव ने धरा से दानव को ललकारा था
इस युग में दानव के तांडव से
कौन शिव बन धरा को तर जाएगा

चिंतन मनन की यह धारा थी
आज इसपर भी मंथन कर दिया
उस विश से तो शिव ने तारा था
यह विश स्वयं लहू पीकर ही मानेगा

अनेकता में एकता की यह धरा थी
उसको तुमने आज तोड़ दिया
हंस कर जो गले मिलते धे
उस मुख को तुमने आज मोड़ दिया

चिंतन मनन की यह धरा थी
जिसपर अनेक होकर भी हम एक थे
अपने स्वार्थ को बहलाने के लिए
उस धरा को तुमने रक्तपान कर दिया।।

बरसों से यही सब चल रहा है

यही सब चल रहा है बरसों से
हो रहा सीताहरण सदियों से
सभ्यता का कर रहे चीरहरण
मना रहे शोक कर अपनो का मरण

ना स्वयं अब जिवीत  हैं 
ना जिवीत है इनमें मानवता
विलास का करते है सम्भोग
फैला रहे केवल दानवता

यही सब चल रहा है बरसों से
अम्ल बह रहा है नैनों से
कलम भी आज दासी हो चली
वो भी आज कोठे पर नीलाम हो चली

जागरूकता का नाम असहिष्णुता हो गया
पत्रकारिता राजनेताओं की रखैल हो चली
यही सब चल रहा बरसों से
सत्ता के गलियारों में अब भारत माता रो पड़ी

सीता को ना छोड़ा इन्होंने
द्रौपदी का भी चीर हरण कर दिया
कलाम को अब अपनी दासी बनाकर
भारत माँ को भी नीलाम कर दिया।।

They Forget That

They fill it to the hilt with rock
Claiming it to be something like stock
It always gives me jitters and shock
As is it is for them to price the life to mock

They say it as the freedom
When they themselves do it seldom
They call it as their right to speech
When they take on the system to impeach

But where they think they are right
Where they fight out with their might
They forget their own sight
When they themselves add to the plight

They seem to forget the days they did it
They seem to forget to contribute to it
All they do today is to stand and speak
All they do today is to stand and squeak

They forget that they too are responsible
They forget that they need to be sensible
They forget that they need to rise for nation
They forget that freedom too comes with a caution

They forget to use their brain when they speak
All they do today it to stand and squeak
They give it the name of freedom of kinds
When they forget to apply their fluid minds

They fill it to the hilt with rock
Claiming it to be something like stock
It always gives me jitters and shock
As is it is for them to price the life to mock!!

Monday, March 7, 2016

क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला

विष से भरा है आज मेरा प्याला 
जीवन मंथन की है यह हाला 
कटु है आज हर एक निवाला 
विष से भरा है आज मेरा प्याला 

कैसा है यह द्वंद्व जीवन का
हर पल है जैसे काल विषपान का 
कैसा है यह पशोपेश मेरा 
हर ओर दिखता मुझे विष का डेरा  

ना मैं शिव हूँ ना है मुझमें शिव 
ना धर सकूँ कंठ में विष की नींव 
पी लूँ  यदि हलाहल का यह प्याला 
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला 

विष से भरा है आज मेरा प्याला 
जीवन मंथन की है यह हाला 
पी लूँ  यदि मैं यह हलाहल 
क्या बंद हो जाएगा जीवन का छल 

कटु है आज हर एक निवाला 
विष से भरा है हर एक प्याला 
पी लूँ  यदि मैं यह जीवन हाला 
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला 

ना मैं शिव हूँ ना है मुझमें शिव
कैसे धरूँ कंठ में विष की नींव 
नहीं बन सकता मैं शिव की प्रतिमा 
नहीं है मुझमें अब इतनी महिमा 

कैसा है यह द्वंद्व जीवन का 
क्यों है हर पल मेरे विषपान का 
कर भी लूँ यदि मैं विषपान 
नहीं कर सकूँगा मैं जगत कल्याण॥ 

Sunday, March 6, 2016

तार आज धरा को

हर हर महादेव जय शिव शम्भो
बिगड़ी बना हर वर दे हमको
जिस पाताल में आज है धरा
जिस पाताल में है अथाह विश भरा
उस पाताल से धरा को तू निकाल
एक बार फिर आज बन तू त्रिकाल
हर हर महादेव जय शिव शम्भो
बन त्रिकाल पाप मुक्त कर तू धरा को
उठा त्रिशूल कर तू संहार आज
विकट रूप धर कर तू ये काज
सागर मंथन का विश पिया जो तूने
आज धरा को उस विश से मुक्त करा
हर हर महादेव जय शिव शम्भो
बन त्रिकाल तार आज धरा को