Wednesday, October 21, 2015

How I wish

How I wish life had Control+Z
I would let many records flee
Nothing would have required a plea
I wouldn't have to go down on my knee

I could have undone my accident
I could have set a precedent
I could have undone the first love
I could have undone the bullet cove

How I wish life had Control+Z
I would let many records flee
I would have undone my erred jobs
I would have undone manager's blobs

I could have undone so much
To reduce the sourness of life
To say the least of all
I could have undone you 

For you have been one of the reason
For you have been the source of treason
You have added hell lot to my stress
You did all you could to me to suppress

Oh Yeah! I want you undo you
But, sad Life doesn't have Control+Z
I have to live you that experience and memory
I still wouldn't go down on my knee

I would prefer to eject one of us
Either you from my circle 
OR
Myself from your circle

I wish life had that Control+Z
I would have made you flee
Now, I need to do it right
Move away to keep you away from Sight!!

Please Come Back

Why and How I am thinking
Without you I am living
Life's boat seems to be sinking
Deep in memories, I am drowning

What and When would you be back
To rearrange life's rack
Moments now is what I am counting
The task itself seems to be daunting

The heat of loneliness is scorching
Where am I lost am searching
Without you life seems to be at halt
Who should I blame for this fault

Every day every moment I am waiting
Moments now is what I am counting
Deep in your memories, I am sinking
When would you be back, I am thinking



Monday, October 12, 2015

नवरात्रों का त्यौहार

नवरात्रों का त्यौहार आया 
माता का पर्व आया 
घर घर अब बैठेगी चौकी 
बारी है घट स्थापना की 

चौक में पंडाल सजेगा 
बीज शंख और ताल बजेगा 
बजेंगे अब ढोल नगाड़े 
खेलेंगे गरबा साँझ तले 

माँ का आशीर्वाद निलेगा 
यह सोच हर काज बनेगा 
नव कार्यों की नीवं सखेंगे 
हर किसी के सपने सजेंगे 

नवरात्र के महिमा अनोखी 
माँ खुद बन जाए सखी 
साथ मेरे वो गरबा रचे 
ढोल तासों में सुर पर नाचे 

दुर्गा भवानी चंडी काली 
हर नाम में है उसकी लाली 
माँ है वो जग पालन करेगी 
दुष्टों का वो नाश करेगी 

इस नवरात्र है मेरी प्रार्थना 
घर मेरे तू सुख शान्ति लाना 
इस राष्ट्र जो है घर मेरा 
फिर से एक बार कर दे सुनहरा

भ्रष्टाचार का तू नाश कर दे 
भक्तों का भविष्य उज्जवल कर दे 
नाश कर तू देशद्रोहियों का 
आरम्भ कर दे उसके पतन का 

इस नवरात्र मेरी यही अर्चना है 
 बस यही है मेरी प्रार्थना 
सूखे को तू कर दे हरा 
फसलों से लहलहा दे यह धरा 

आशीर्वाद दे तू माँ अम्बे 
कोई अब भूखा ना सोये 
हर घर में जले चूल्हा 
किसी के पेट की  जले॥ 

नेताओं का धर्म

आज के नेताओं का धर्म क्या है 
किसकी वो करते हैं पूजा 
कभी हुई ऐसी जिज्ञासा 
कभी उठा है कोई ऐसा प्रश्न 

गौर करोगे तो जानोगे उनकी जात 
राजनितिक अभिलाषा है उनका धर्म 
करते हैं वो सत्ता की पूजा 
नहीं पैसे से बढ़कर उनके लिए कोई दूजा 

कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं 
उनके लिए सर्व धर्म तुच्छ हैं 
जिस राह पर वो चलते हैं 
राजनीति है उसका मर्म 

विष धर्मनिरपेक्षता का फैलाते हैं 
कर अधर्म एवं जातिवाद की राजनीति 
कसौटी क्या है उनके धर्म की 
वाही आज की है सबसे बड़ी अनीति 

फैला अराजकता का द्वंद्व 
बैठ सकते हैं अपनी ही रोटी 
जनता की हो चाहे बोटी बोटी 
चलते हैं ये धर्म की राजनीति॥ 

सत्ता का लालच देखो

सत्ता का लालच देखो 
देखो इनकी मंशा 
नहीं किसी को छोड़ा इन्होने 
भारत माँ तक को है डंसा 

आरक्षण पर राजनीति खेल रहे 
कर रहे देश के टुकड़े 
जात पात में हमको बाँट रहे 
कर रहे धर्म के टुकड़े 

सूखे की राजनीति खेली 
खेली इन्होने लहू की होली 
दम्भ के ठहाकों के बीच 
कर रहे मृतात्मा पर ठिठोली 

नहीं इन्हें कोई लज्जा 
धर्म को बना दिया है कर्जा 
कहते खुद को धर्मनिरपेक्ष हैं 
करके धर्मों का बंटवारा 

इनकी सत्ता का लालच देखो 
इनकी मंशा क्या है जानो 
चुनाव में मत देते हो तुम 
उससे पहले प्रत्याशी को तो जानो॥