Thursday, June 18, 2015

धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई

धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई 
ना अपनों में ना परायों में पाया है कोई 
दुःख की तपिश में आज जीता है हर इंसान 
सुख की ललक में बन रहा वो हैवान 

था वक़्त कभी जब अपनों में बैठा करते थे
दुखों की ज्वाला पर अपनत्व का मलहम लगाते थे 
था वक़्त कभी जब बच्चे परिवार में पलते थे 
अपनों में रह अपनत्व का भाव सीखा करते थे 

आज हर इंसान अपनों से दूर है 
अपनत्व की हर शिक्षा से आज वो अनभिज्ञ है 
अपनों से बढ़कर आज मैं में जीता है 
अपनत्व से बढ़कर अहम के भाव में खोता है 

धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई 
अपनों से दूर अपने ही अहम में खोया है हर कोई 
दुःख की तपिश में आज जीता है हर इंसान 
अपने ही अहम के साये में बन रहा वो हैवान॥ 


Wednesday, June 3, 2015

डर

डर की ना कोई दवा है 
ना डर का कोई इलाज
यह तो सिर्फ पनपा है 
अपने ही खयालो के तले

डर के आगे ना हार है ना जीत 
डर के सामने ना है किसीका वज़ूद 
डर रहता है दिलों में छुप कर 
नहीं किसी डर का कोई अंत 

डर कर जीने वालों
डर कर जीना छोडो 
देखो अपनी आँखें खोल कर 
ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है 

डर को छोड़ किनारे 
ज़िन्दगी की कश्ती कहना सीखो 
डर से छुप घर में ना बैठो 
बाहर की दुनिया देखो कितनी शालीन है 

डर से ना आज तक कोई जीत पाया है 
ना ही डर को दरकिनार कर कोई जी  पाया है 
लेकिन तुम अग्गज़ करों अपने अंदाज़ से 
लड़ो डर से आज तुम, कर खुद पर भरोसा ||  





वक्त का तकाज़ा

दिल में  यादें बसी हैं
कसक बन गयी अधूरी तमन्नाएँ
वक्त का तकाज़ा है शायद
कि दवा भी आज दर्द दे गयी


यादों में आज भी ताजा है
वक्त वो, जो गुजर गया कहीं
 यादों में आज भी ताजा है
वक्त वो जब हम तन्हां नहीं थे


एक था वक्त उन दिनों
जब दोस्तों के संग मिल बैठते थे
अब वो वक्त है संगदिल
कि दोस्तों का दीदार मुनासिब नहीं


एक वो वक्त था हमारा
कि तन्हाई को हम ढूंढते थे
और अब ये वक्त है आज का
जब तन्हाई में ज़िन्दगी बसर करते हैं


कि तब तन्हाई में वक्त गुजरता नहीं था
अब है कि हर आलम तन्हां तन्हां सा है
इंसानों के बीच रहकर भी
दिल हमेशा तन्हां तन्हां सा है


मशीनो के रहकर इन्सां
खुद एक मशीन बनकर रह गया है
ज़िन्दगी के मुकाम पर बढ़ते
खुद तन्हाई की मिसाल बन गया है


एक वो वक़्त था कभी हमारा
जिसकी यादें आज भी साथ हैं
आज ये वक़्त है कुछ ऐसा
जिसकी हर याद तन्हाई ही है!!!