Tuesday, November 20, 2012

रात का आगोश

आज की शाम बेइन्तेहाँ परेशान है
इंतज़ार हमें रात के आगोश का है
अधूरे लम्हातों से हम गुज़र चुके
दिल में अब उनका कोई मोल नहीं

चाहत है बस अब रात के आगोश की
सर्द हवा के झोंकों में लहराती जुल्फों की
ना अब कुछ अधूरा है ज़िंदगी में
ना हमें किसी और की तलाश है

ज़िंदगी के मुकाम जो हमें छोड़ चले
उन मुकाम से हमें अब कोई चाहत नहीं
जिन राहों पर अब हम जाते नहीं
उन राहों से हमें कोई चाहत नहीं

चाहत है बस रात के आगोश की
चांदनी की रौशनी में हो जो नही सी
चाहत है अब सिर्फ उस अदद साथ की
जिसकी मोहब्बत ने हमें फिर जिंदा किया||

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