Wednesday, November 11, 2009

युद्ध का उदगार

प्रखर प्रभद्ध ललाट पर रक्तिम तिलक की छाप है
युद्ध को अग्रसर वीर अश्व पर सवार है
हाथ में लिए वो खडग, कृपाण, कटार है
नेत्रों के उसकी मातृभूमि का सम्मान है

मस्तक पर उसके रणविजय का प्रताप है
कालसर्प सी लहराती उसकी तलवार है
कटार पर उसकी विजय की धार है
बाजुओं में लिए विजय का प्रमाण है

धरा ने किया जो आज ये रक्तपान है
वीर के रण धर्म में उसका रूप विशाल है
काली के श्रृंगार में उसका योगदान है
प्रखर प्रभद्ध ललाट पर रक्तिम तिलक की छाप है

रक्तबीज रक्तपान युद्ध का कोहराम है
संस्कृति के चक्र में इसका एक स्थान है
मानव के ह्रदय का ये एक उदगार है
उन्नति के पथ पर ये एक अर्धविराम है

प्रखर प्रभद्ध ललाट पर रक्तिम तिलक की छाप है
युद्ध को अग्रसर वीर अश्व पर सवार है




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