Tuesday, November 10, 2009

वर्षा ऋतू में जीवन का श्रृंगार हुआ

वर्षा ऋतू में क्या कहें
जीवन में हुई हलचल है
काली इन घटाओं को देख
तुम्हारी घनी लटों का आभास हुआ
यूँ बूंदे जब गिरी वृक्षों पर
तुम्हारे आलिंगन का आभास हुआ
नाचते मयूर को देख
ये ह्रदय भी पागल हुआ
वृक्षों से गिर जब धरती में सिमटी बूँदें
मेरे अंतर्मन में तेरे ही नाम कि पुकार हुई
पानी जब पहुँचा धरातल में
सींचा हर जड़ को उसने
बीज जो दबे थे धरती के गर्भ में
उनमें भी उन्माद हुआ
अंकुर फिर पनपा उनमें
तो धरती का श्रृंगार हुआ
देखो तो इन कोपलों से
एक नए जीवन का आधार हुआ
क्या कहूँ मैं तुमसे प्रिये
कि वर्षा ऋतू में जीवन का श्रृंगार हुआ

2 comments:

nehabhadoria said...

Prakriti ke shringar ki,
Ek nari ke adbhut kaya ki,
Varsha aur nav jivan ke saransh ki,
yeh chavi hai kavi ke ek aseem aabhas ki..

Manoj said...

ATEE UTTAM! WISHING YOU ALWAYS BEST :)