Wednesday, January 18, 2017

कल्पना

कल्पना मेरी जीती है शब्दों में
शब्दों से हूँ मैं खेलता
कल्पना में नहीं जी सकता मैं
जीता हूँ कल्पना अपनी शब्दों में

जीवन कल्पना नहीं एक सच है
कल्पना में जीना नहीं है मुझे
शब्दों को पिरो मैं लिखता हूँ
वर्णमाला से गीत बनाता हूँ

शब्दों में मेरे एक सच है 
जीती है इनमें मेरी कल्पना
कल्पना में नहीं है मेरा जीवन 
जीवन की कल्पना मैं शब्दों में कहता हूँ

कल्पना मेरी जीती है शब्दों में
शब्दों से मैं सच कहता हूँ
नहीं जी सकता मैं कल्पना में
मेरी कल्पना शब्दों में बहती है 

जीवन कलह

कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन
हृदयालाप कहे तू मेरी सुन
मष्तिष्क में भी मचा है कोलाहल 
नहीं है स्थिर जीवन, पनप रहे उग्र विचार 

नहीं चाहता जीवन में कोई अल्पविराम 
नहीं चाहता कोई जीवन में स्थिर कोलाहल 
किन्तु जीवन फिर भी है अस्थिर
जीवन में फिर भी है एक कलह 

हलाहल जीवन की मैं पी चुका 
कोलाहल फिर भी मिटा नहीं 
जीवन हाल बन गई अश्रुमाला 
कोहराम फिर भी थमा नहीं 

कैसे कहूँ, किससे पूछूँ कैसी है विडम्बना 
कैसे जिऊँ, किससे जानू मैं इसका उत्तर 
कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन
किन्तु नहीं पिरो सकता मैं उससे वर्णमाला