Wednesday, May 25, 2016

पथिक

चला जा रहा अपने पथ पर
अनभिज्ञ अपने ध्येय से
जो मोड़ आता पथ पर
चल पड़ता पथिक उस ओर

विडम्बना उसकी यही थी
न मिला कोई मार्गदर्शक
अब तक केवल चला जा रहा था
अज्ञानी एक पथभ्रष्ट सा

हर पथ पर खाता ठोकर
हर मोड़ पर रुकता थककर
किन्तु फिर उठता चलता
अज्ञानी एक पथभ्रष्ट सा

जिस पथ चलता उठकर
जिस मोड़ चलता रूककर
हर पथ हर मोड़ उसको
लाता एक ही डगर पर

जीवन पथ की यही है कहानी
हर ओर है केवल विरानी
नहीं इसमें ऐसा कोई राही
जो बता दे तुम्हें मार्ग सही

चलना है तुमको केवल अकेले
हर पथ पर स्वयं को सम्भाले
सर्वज्ञ समीक्षा सदैव कर
सही दिशा का चयन है करना।।

सूखा आज हर दरिया

सूखा दरिया सूखा सागर
ख़ाली आज मेरा गागर
सूखे में समाया आज नगर
हो गई सत्ता की चाहत उजागर

बहता था पानी जिस दरिया में
आज लहू से सींच रहा वो धरा को
अम्बर से अंबु जो बहता था
आज ताप से सेक रहा वो धारा को

सूखा आज ममता का गागर
सूखी हर शाख़ हर पत्ता
नहीं छूटता फिर भी मोह मगर
लालच के परम पर है सत्ता

पैसे की धूम है हर ओर
नहीं इस लालच का कोई छोर
कितना तुम अपना गागर भरोगे
कितनो को और प्यासा मारोगे

जिनके श्रम से है अपनी तिजोरी भरी 
आज उनकी लाशों से है धारा भारी
बोझ ये तुम कर सकते हो हल्का
छोड़ कर लालच इस सत्ता का!!