Sunday, April 20, 2014

Electoral Sorties

All to say none to act
This all seems to be the Pact
All Leaders All Parties
Only do Electoral Sorties

तेरे नैनो की भाषा

तेरे नैनो की भाषा जाने ना
मेरे नैन तेरे नैनो की भाषा जाने ना
ना जाने क्या कहते हैं तेरे नैना
ना जाने क्या छुपाते हैं तेरे नैना

मेरे अंतर्मन में मचा कोलाहल
ना जाने क्यों चुप हो जाते हैं तेरे नैना
जाने किस घडी में क्या कहते हैं
ना जाने क्यों ये अकस्मात चुप होते हैं

ना समझ पाता हूँ मैं इनका कहना
ना मैं समझ पाता हूँ इनका चुप रहना
ना जाने क्या कहते हैं तेरे नैना
ना जानू मैं तेरे नैनो की रैना

हिला अधर अपने कर शांत मेरी जिज्ञासा
मुख मधिर वाणी से पूर्ण कर मेरी आशा
चुप रहकर यूँ ना मचा कोलाहल मेरे मन में
ज्ञान दे मुझे तू क्या कहते हैं तेरे नैना||

Today's Leaders

Its been tough and tardy
Its been really hard 
Too much too choose from
But too little are my options

Too many leaders around
Too much they promise
Whom should I select 
Whom should I opt for

Its too hard to decide
Its too tough to accept
All they do is show up
When they want my support

Once they win they disappear
Like they are some strangers
They come to my door once
Then make me run from pillar to post

They call themselves my leader
But I just become a reader
I see them once in five years
Then they become headlines

They feature in magazines
They feature in newspapers
They talk on talk shows
But what I don't see is work!!

सत्ता का सच

बहुत खुश हो लिए
बहुत कर किया गुणगान
कुछ दिन और रुक जाओ
उसके बाद करना बखान

पंजा कसो, कमल उठाओ
या हाथी की करो सवारी
साइकिल से यात्रा करो
या कहो झाडू की है बारी

चाहे कुछ कर लो तुम जनता
नहीं बदलना इस राष्ट्र का भाग्य
जिस दल में तुम झांकोगे
भ्रष्टों का ही अम्बार मिलेगा

आज ये नेता देते करोडो
पाने को चुनावी टिकट
कल ये ही नेता सत्ता में आकर
चूसेंगे करोड़ों राष्ट्रीय धरोहर से

कहते होगा विकास देश का
देंगे सबको आर्थिक सहायता
देखना वाही अर्थ अब होगा सिद्ध
जब भरेंगे पहले इनके चौबारे

नहीं कोई नेता सच्चा
नहीं सच्चा कोई दल
हर और धांधली फ़ैली है
कर रहा भ्रष्टाचार तांडव

देश के विकास के नाम पर
नग्न हो फिर रहा किसान
हर नागरिक होकर हताश
पीता फिर रहा हलाहल||


बगुला भगत नेता

बैठ ताल किनारे दरख़्त सहारे
देख रहा मैं मछरियों का खेला
कैसे अठखेलियाँ वो करती
कैसे एक एक दाने पर झपटती

ऊपर शाख पर बैठ बगुला भी
देख रहा था सारा खेला
एक दांव में गोता लगा कर
चोंच में भींच लेता मछरी

क्षण भर के इस हमले से
सहम सी जाती मछरिया
गोता लगते बगुले से बचने
चंहूँ और बिखर जाती

बैठाताल किनारे दरख़्त सहारे
देखा मैंने सारा मंजर
सोच मैंने होता कुछ ऐसा ही 
जब आजा समय चुनाव का

अठखेलियाँ करती जनता 
पल भर को सहम सी जाती
कौन चुनकर आएगा शाषन करने
कौन चुसेगा लहू अब मेरा

हर नेता दिखता बगुले सा 
जो आता पांच बरस में एक बार
छेड़ कर हमारी सोच को 
तितर बितर कर देता हमको

समय का खेला खेलता संग हमारे
माँगता मत घर घर जाकर
फिर जीत चुनाव होता ऐसा गायब
ढूंढे ना मिलता वो फिर गली या चौबारे पर

रगड़ एडियाँ वंदना करता वो हमारी
प्रगति के रोजगार के दिखाता वो सपने
कर जाग्रत दिवास्वप्न हमारे
छोड़ जाता हमें रगड़ने को अपनी एडियाँ

क्या यही चाहा था हमने स्वंत्रता का स्वरुप
क्या यही था सपना हमारा कि देखे उनका गरूर
बैठ ताल किनारे दरख़्त सहारे
देख रहा था में चुनावी मंजर

हर नेता यहाँ बगुला है 
और जनता बनती मछरी
बैठ टाक किनारे दरख़्त सहारे
देख रहा था मैं सारा मंजर||

Friday, April 18, 2014

कान्हा कान्हा पुकारूं

कान्हा कान्हा पुकारू मैं
इस कलयुग में 
द्वापर के युगपुरुष को
ढूँढू मैं कलयुग में

कह चला था कभी कान्हा
"यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत
अभ्युथानम अधर्मस्य तदात्मानं श्रीजाम्यहम"
किन्तु आज नहीं आता नज़र

कान्हा कान्हा पुकारूँ में 
इस कलयुग में
ढूंढूं तुझे आज में 
पापियों भरे इस जग में

अधर्मी आज हो चला है मानव
पाप के पैरों तले रोंद 
कर गर्व रहा अपनी कुक्रितियों पर
नाम तेरा ले फैला रहा विनाश

ना निभाता हर कोई राजधर्म
ना निभाता है कोई पौरुषधर्म
दिखता हर तरफ सिर्फ विनाश है
निभता है आज केवल हठधर्म

शरण में तेरी आया हूँ मुरलीमनोहर
प्रार्थना कर स्वीकार मेरी
समय के चक्र ने आज 
फिर गुहार लगाईं तेरी

नाम तेरा पुकारता फिर रहा मैं
राह तेरी तक रहा आज मैं
अवतरित हो आज फिर एक बार
उठा चक्र कर पाप का संहार

कान्हा कान्हा पुकारूं मैं
पीड़ा ग्रसित हो कर
चारो दिशा ताकूँ मैं
बाट तेरी जोह कर||

Wednesday, April 16, 2014

बीते वक़्त का तराना

आज याद आता है वो गुजरा ज़माना
बचपन का हर वो तराना
था कुछ और ही वक़्त वो
जब दूरदर्शन शुरू होता था शाम को

क्या वक़्त था वो 80s 90s का
जब एक घर में चार नहीं
चार मोहल्लो में एक टीवी होता था
याद आता है आज वो ज़माना...बचपन का हर तराना

वो डाकिये का घर घर डाक बाटना
वो केयर ऑफ नंबर पर कॉल आना
दोस्तों के साथ बैठ मोहल्ले में
क्रिकेट के शॉट्स पर चीखना चिल्लाना

याद आता है आज वो ज़माना
अपने लड़कपन का हर तराना
वक़्त वो जब मिलती मुश्किल से जीन्स थी
पहन कर जिसको लगता जहाँ जेब में था

क्या दिन थे वो क्या था वो ज़माना
ना था मोबाइल ना सोशिअल नेटवर्क
बजती थी बस सीटियाँ थिएटर में
ना कभी थी सुनी घंटी किसी के मोबाइल की

याद आता है आज वो ज़माना
बीते वक़्त हर वो तराना
जब लगा गले दोस्त देते थे बधाई
ना की आज की तरह फेसबुक पर

याद आता है आज वो ज़माना
बीते वक़्त का हर वो तराना
चाहता है आज भी दिल गुनगुनाना
लेकिन बदल गया है ज़िन्दगी का अफसाना||

Monday, April 14, 2014

भंग का रंग

बैठ धरा पर देख रहे थे
स्वर्ग सा मंजर
नाम ले भोले का
गटक रहे थे भंग

जो आनंद मिला भक्ति का
जो हुआ जीवन दर्शन
ना था कुछ ऐसा बचा
जो ना किया किसी को अर्पण

निद्रगोश में जब समाये
जग सारा लगा न्यारा
जब खुले चक्षु हमारे
हुआ असल ज्ञानार्जन

बैठ धरा पर ले भोले का नाम
भंग के रंग में किया स्वर्ग दर्शन
पर जब उतरा भंग का रंग
किया धरा को जीवन अर्पण