ग़मगीन आँखों से दर्द के अफ़साने बह चले
आज हम अपनी कहानी पर रो पड़े
दर्द तो अपना होता है
फिर क्यों आब-ऐ-तल्ख़ बहा
दर्द तो अपना होता है
फिर क्यों अफसानो का तांता लगा
सोच फिर हमें यूँ बेताब कर चली
कि आब-ऐ-तल्ख़ में ज़िन्दगी बह चली
ग़मगीन आँखों से दर्द के अफ़साने बह चले
आज अपनी ही कहानी पर हम रो पड़े
आज हम अपनी कहानी पर रो पड़े
दर्द तो अपना होता है
फिर क्यों आब-ऐ-तल्ख़ बहा
दर्द तो अपना होता है
फिर क्यों अफसानो का तांता लगा
सोच फिर हमें यूँ बेताब कर चली
कि आब-ऐ-तल्ख़ में ज़िन्दगी बह चली
ग़मगीन आँखों से दर्द के अफ़साने बह चले
आज अपनी ही कहानी पर हम रो पड़े
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