Sunday, July 15, 2012

O'God Help Me

Get me through this
O'God get me out of this 
It is suffocating me to death
O'God I can see the hell
I can now feel like hell
O'God, please get me out of this

The life today looks like a prison
Days pass with a blur vision
I don't understand the reason
For my life treating me with this treason
O'God, get me out of this
Please get me out of the hell it is

I wish to feel the scorching heat of summer
I wish to feel the chilling winter
I want to dance in the water droplets of rain
But life today witnesses that pain
The pain that dried tears
The pain that realized all the fears

O'God help me get through this 
O'God help me get over with this
Please help me get over with my pain 
Please help me get over with my tear's rain
O'God help me out of this hell
Please help me get out of this hell....

माँ ना दर्शन

आज मन माँ ना दर्शन जोवे छे
रे माँ ना दर्शन जोवे छे
माँ रे दर्शन माटे आ मन होवे रे
रे माँ ना दर्शन माटे आ मन होवे

माँ ना दर्शन नी धुन मने लागी रे
रे धुन मने लागी
माँ ना दर्शन सुख में आ मन तडप्यो
जे माँ रे दर हूँ चाल्यो

माँ ना दर्शन करवा माटे हूँ अम्बाजी चाल्यो रे
माँ ना दर्शन करवा माटे हूँ पावागढ़ चाल्यो रे
माँ ना दर्शन करवा माटे हूँ वैष्णो धाम चाल्यो रे
रे माँ रे दर चाल्यो रे 

माँ ना दर्शन करी ने हूँ धन्य थयो 
रे हूँ धन्य थयो
माँ ना दर्शन करी ने हूँ स्वर्ग सुख पायो
रे स्वर्ग सुख पायो 










कुछ वो दिन थे

न जाने कहाँ वो गुम हो गई है
कि जिंदगी में एक खालीपन सा लगता है 
तन्हाई में उसका अक्स नज़र आता है
आज हर पल उसका इन्तेज़ार सा रहता है

कुछ वो दिन थे की लबों पर वो थिरकती थी
आज हर लम्हा उसकी याद दिलाता है
कुछ वो दिन थे की चेहरे पर उसका नूर था
आज बारिश की हर बूँद उसके याद दिलाती है

न जाने कहाँ गुम हो गई है
कि दिल हर पल उसे ही खोजा करता है
न जाने आज क्यूँ हर पल
यूँ जिंदगी में मायूसी से रहती है

कुछ वो दिन थे ज़िंदगी के जिनमें 
हर पल मैं मुस्कुराता था
आज न जाने कहाँ बेवफा मेहबूबा सी
मेरी मुस्कराहट मुझे तन्हा छोड़ चली


Friday, July 6, 2012

When it Rained Last Night

When it rained this night
Wind blew with all its might
The force of the breeze
Didn't let the feelings freeze

Trees and branches swayed around
Making your figure on the ground
How I wish you were around
Feelings would have had no bound

The rains made it clatter on the roof
Soil had the marking of the hoof
Seeing the beauty of the nature
Reminded of every living creature

Every moment the rain made a splash
Your figure made a marking dash
The heart was beating high and low
Feelings were at their full flow

Every moment when it rained this night
Heart was beating with its full might
It was beating for you to know
There is no bound on the show..

रे मैं तेनु वेंखया

रे मैं तेनु वेंखया जद ये आँखां हुई नम
रे मैं तेनु वेंखया जद ये सांसां हुई बंद
नाम मैं तेरा लेते लेते कर गई खुद से जुंग 
नाम मैं तेरा लेते लेते हार गयी अपनी जंग

इश्क में तेरे अपना हर सुख तज गयी मैं
इश्क तुझसे करके मैं बण गयी रांझणा तेरी हीर
नाम तेरे कर जिंदगानी मैं सह गयी हर पीड
चाहत में तेरी अब तो सूख गया है आँखां का नीर

ना तेरा इश्क मिला ना थामा तुने मेरा हाथ
ना तेरा नाम मिला ना इश्क में तेरा साथ
रे मैं तेनु वेंखया जद ये आँखां हुई नम
इश्क कर तुझसे मेरी जिंदगानी हुई यूँ कम

रे मैं तेनु वेंखया जद ये आँखां हुई नम 
रे मैं तेनु वेंखया जद ये सांसां हुई बंद
नाम तेरे कर चली मैं अपनी ये जिंदगानी
काश तेरे संग मैं इसे बिताती

रे मैं तेनु वेंखया जद ये आँखां हुई नम
रे मैं तेनु वेंखया जद ये सांसां हुई बंद
नाम मैं तेरा लेते लेते कर गई ज़िंदगी से जुंग
नाम मैं तेरा लेते लेते हार गयी ज़िंदगी की जंग



जीवन द्वन्द

खड़े जीवन दोराहे पर हम
किस ओर जाएँ हम
एक ओर है कर्म क्षेत्र
दूजी ओर है धर्मं का निवास
जीवन के इस दोराहे पर 
मचा है ह्रदय में ऐसा द्वन्द

गीता का उपदेश है कहता
कर्म क्षेत्र की ओर है बढ़ना
रामायण का सार है कहता
धर्मं क्षेत्र में चुकाना है ऋण
मष्तिष हो चला है अब मूढ़
प्रश्न है जटिल और गूढ़

आज इस दोराहे पर जीवन के
करें कैसे हम चिंतन और मनन
कर्म और धर्मं के युध्ध में
किस ओर जाएँ अब हम
कर्म क्षेत्र में आगे हम बढ़ें
या धर्मं का चुकाएं ऋण

द्वन्द है ह्रदय में ऐसा
जिसमें हार हमारी है
धर्मं की राह चले तो
कर्म को हम खोते हैं
कर्म की राह चले तो
अधर्मी हम कहलाते हैं||

वर्षा से धरा ने श्रृंगार किया

अम्बर में जब छाए काले मेघा
प्यासी धरती को एक आस लगी
बरखा की बूंदे जब सिमटी आँचल में 
धरा की अपनी प्यास बूझी
जन जन में उल्लास उठा
हर ओर एक उन्माद दिखा

बूंदों ने जब सींचा जड़ों को
वृक्षों ने भी श्रृंगार किया
देख धरा के वैभव को
मयूर ने भी नृत्य किया
खुशहाली हर ओर छायी
पंखियों ने भी कोलाहल किया

अम्बर में जब छाये मेघा
धरा पर उसका आभास हुआ
ग्रीष्म ऋतू से प्यासे पपीहे ने भी
वर्षा की बूंदों को ग्रहण किया
उल्लासित जन जन ने 
हर्ष में नवजीवन का स्वागत किया

अम्बर पर जब छाये मेघा
धरा ने श्रृंगार किया
खेतों में चले हल
नयी उपज का अंकुरण हुआ
उल्लासित जन जन ने 
वर्षा में हर्षित नृत्य किया||

मानव जीवन का प्रश्न

दिवस के प्रथम प्रहार में
सूरज अंधियारा हरता है
पर मानव के जीवन में 
हर क्षण मानव ही मरता है

भोर भये आँगन में 
पंछियों का स्वर घुलता है
पर मानव के जीवन में 
हर क्षण कोलाहल ही गूंजता है

ब्रह्म मुहूर्त से गोधुली वेला तक
मानव के कर्म का चक्र चलता है
पर मानव के जीवन में 
हर क्षण द्वंद्व युध्ध मचता है

जीवन के हर क्षण हर मोड पर
मानव अग्नि परीक्षा देता है 
ना चाह कर भी मानव 
जीवन में घुटने टेकता है

क्या यही देवों की श्रृष्टि है 
क्या यही देवों की है मंशा
क्या यही मानव जीवन का सत्कार है
जिसमे उसके अंतर्मन की चीत्कार है??

चंद सवालात

लम्हात उस शाम कुछ अजीब थे
अफ़सुर्दा उन लम्हात में हम थे
मुलाक़ात कुछ उन लम्हात में हुई
जिंदगी जब हमसे रूबरू हुई 

मंज़र-ऐ-उल्फत में जो मुलाक़ात हुई
जिंदगी चंद सवालात हमसे यूँ कर गई
कि ना कोई जवाब था हमारे पास
ना हमें इल्म उनके जवाबों के वजूद का

चंद सवालात ऐसे पूछे जिंदगी ने
कि मेरा वजूद सिहर उठा
मेरा वजूद जो पूछा ज़िंदगी ने
मेरी रूह तक काँप उठी

सवालात वो ऐसे जिनका कोई जवाब नहीं
बैठा था मैं ऐसे, जैसे मेरी जुबां ही नहीं
सोचा कि सबब-ऐ-मुलाक़ात क्या है
सवाल एक ऐसा,  जिसका कोई जवाब नहीं

लम्हात उस शाम कुछ अजीब थे
मंज़र-ऐ-उल्फत में वो मुलाक़ात हुई
चंद जवाब ऐसे पूछे ज़िंदगी ने
जिनका जवाब मेरे खुदा के पास नहीं