नगमों का गर कभीं कोई दर्द समझे,
गर कोई उनकी रूह को समझे,
तो एक पयाम निकलता है कुछ इस कदर,
कि कायनात में जैसे चाँद निकले बादलों में छुपकर|
कल जो हमनें कलाम लिखा था, उसपर हमें मिला हमारी हसीन शायरा का पैगाम, पैगाम में था उनका कलाम जो हमनें थोडा और पढ़ा और थोडा और उसे उनसे बात कर निखारा| तो पेशे खिदमत है नया कलाम सिर्फ आपकी नज़रों कि इनायत के लिए |
वो हंसी मुलाकात जो तुमसे हुई...
पल भर का साथ, जो बीती बात हुई...
वो जो पल अब एक अरसा हुआ
मंजिलों का सफर सिफर सा दूर हुआ ...
फासलें ये दूरियों के हैं या खयालात के ...
चिलमन ये जो हैं पथ्थर के हैं या शीशे के .
तकते हैं राह आपकी जिन शाम-ओ-सहर ..
वो पल हमारी चाहत के हैं या बंदगी के...
इन्तेज़ार ऐ इबादत है अब तो उस पल का
इन्तेहाँ-ऐ-दामन है अब तो उस पल का
जब रूबरू हो यादों की ताबीर होगी...
आपकी ग़मगीन शामों की वो आखरी मंजिल होगी...
सर्द हवाओं में हमारी बाहें आपका साहिल होगी...
जुल्फों में हमारी आपकी खुशियों कि कश्ती होगी
इल्तजा है ऐ मुसाफिर तुझसे कि गमो में न खो जाना...
मोहब्बत की राह में किसी की रूह तो तेरे साथ होगी....
2 comments:
साथ ना मिला हसीन तेरा
इल्म न हुआ हमें गैरत का
समंदर में इश्क के डूबते रहे
हमें तो मरने का भी गम न हुआ
क्यों दिलासा देते हो,
क्यों करते हो हमें रुसवा
मुकद्दर समझो इसे या मेरा नसीब
मोहब्बत की राह में अकेले ही चलना है
आगोश में अब किसी के जाने की तमन्ना नहीं
नहीं किसी के इश्क में कैद होने की उम्मीद
सहर-ओ-शाम अब तो एक इन्तेज़ार है
कि आलम-ऐ-जिंदगी एक ढलती शाम है
गम नहीं है हमें किसी की जुदाई का
ये तो लम्हा है उनकी बेरुखी और बेवफाई का
कदम हमारे जो रुके से दिखते हैं
तन्हाई के साये में ये ठिठके से दिखते हैं
एक डर है कि दिल सहमा है
किसी के आगोश में जाने से ये डरता है
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