Saturday, April 30, 2011

बेपरवाह

यादें गर खामोश कर जाती तो न होता ये दिल बेचैन
ना होते रूबरू इस कदर गम-ऐ-जिंदगी से
शामों तन्हाई ना करती इस कदर गुफ्तगूं
ना  होती जिंदगी में गहरी ज़ुत्सजु

वादे उनके यूँ बेसब्र ना कर जाते
गर बातों में उनकी शान-ऐ-वफ़ा ना होती
बातें उनकी जो आती है याद तुम्हें
साबित  कर जाती हैं ईमान उनका

कुछ थे वो मजबूर, कुछ थी उनकी मजबूरी
ना थे झूठे उनके वादे, ना थी खोखली उनकी बातें
कुछ गर ना कह गए होते वो तुमसे

यूँ खामोश ना होती तुम्हारी तन्हाई

शायद सुन न सके तुम कहीं उस दिल कि धडकन
ना सुन सके तुम उनके होठों कि थिरकन
दिल में जो उनके कसक उठी
वही यादें तुम्हें खामोश तन्हाई दे बैठी

उठ ऐ राहगुजर पहचान अक्स अपना जिंदगी के आईने में
संभाल अपने दिल को जिसमें है उठा यादों का सैलाब
ठहर, संभल और कर ध्यान उस खुदा का
जिंदगी में हर मोड पर जिसने तेरा साथ दिया

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