Thursday, April 8, 2010

मेरा अक्स

गर खुदा ने कभी मुझसे कहा होता...
रुखसत हो तू हो फारिग अपनी कलम से
मैं कहता ऐ-खुदा
ये कलम है मेरी ज़िन्दगी मेरी तमन्ना
कि ना कर इसको जुदा तू मुझसे
न कर मेरे इश्क को रुसवा
गर कहीं मैं हूँ कगार पर
तो यही है वोह मेरा अक्स....

2 comments:

Vaibhav Bhandari said...

Wah! Wah! kya khoob.....dil kush ho gaya

krshany said...

Great work Mayank bhai...