Monday, April 19, 2010

चाहत

गर हम दिन के पहलु में बैठें
या रात के आगोश में समां जाएं
शाम-इ-सनम हमें न मिल सकेगी
दीदार-इ-सनम न हो सकेगा
गर चाहत सनम कि है दिल में
शाम का पहलु ना छूट सकेगा

1 comment:

Vaibhav Bhandari said...

Wah, kya baat hai...kya khoob likha hai