Monday, August 25, 2008

दर्द-ऐ-दिल

कि अभी तो हुई शुरू बात दिल कि है
और अभी तुम जाते हो
कि अभी तो नासूर--दिल को छेड़ा है
और तुम जाते हो
कि अभी तो खून--जिगर बाकी है
और तुम जाते हो

दोस्त जुल्म यूँ कर
हो गर हिम्मत--नज़र
छेड के दास्ताँ--जिगर
हमें यूँ बेजार कर

Friday, August 8, 2008

गर तुम पिलाओ मदिरा

गर तू अपने होंठों से मदिरा पिलाए तो मैं पी लूँ
कि तेरे हाथों से में बहुत मदिरा पी चुका
गर तू अपने लबों से पिलाए तो मैं पी लूँ
कि तेरी आखों से मैं बहुत पी चुका
गर भर अधर का प्याला पिलाए तो मैं पी लूँ
कि तेरे केसुओं की लटों से मैं बहुत पी चुका
ऐ साकी गर पिला सके तो अपने आगोश में भर पिला
कि बैठ मदिरालय मैं बहुत पी चुका