Monday, May 7, 2018

अंतर्मन की ज्वाला


अंतर्मन में बसी है जो ज्वाला 
ढूंढ रही है बस एक मुख 
इतने वर्षों जो पी है हाला 
बन रही है अनंत दुःख 

नागपाश नहीं कंठ पर ऐसी
जो बाँध दे इस जीवन हाला को 
प्रज्वलित ह्रदय में है ज्वाला ऐसी
बना दे जो हाला अमृत को 

ज्वाला जब आती है जिव्हा पर 
अंगारे ही बरसाती है 
हाला से प्रज्वलित है ज्वाला
जिसमें पुष्प नहीं खिलते है 

अंगारो में जब बसा हो जीवन 
ज्वाला की पीते हो हाला
अमृत कलश नहीं बनता जीवन 
जब ह्रदय में प्रज्वलित हो ज्वाला 

ऐसे बनते है मानव से ज्वालामुखी 
की आधर पर जिनके बसते अंगारे 
ह्रदय में जब प्रज्वलित हो ज्वाला 
पुष्पों की बहार नहीं लाती जिव्हा!!