Monday, April 19, 2010

चाहत

गर हम दिन के पहलु में बैठें
या रात के आगोश में समां जाएं
शाम-इ-सनम हमें न मिल सकेगी
दीदार-इ-सनम न हो सकेगा
गर चाहत सनम कि है दिल में
शाम का पहलु ना छूट सकेगा

इन्तेजार-ए-सनम

नाम गर लिखा हो सनम का शाम पर
जा उसके आगोश में उसका दीदार कर
उसकी साँसों के तरन्नुम में खो कर
अपने इश्क का इज़हार कर
गर ना हो एतबार अपने लबों पर
अपनी आँखों से तू बयान कर
गर गिला हो कोई तो खुदा से अर्ज़ कर
मिलेगा तुझे भी सनम इंतज़ार कर
कि है क्या मज़ा उस दीदार में
जिसकी नज़्म ना लिखी हो इंतज़ार में
हर लफ्ज़ जिसका लिखा हो तेरे आंसुओं से
हर कतरा जिसका सींचा हो तेरे लहू से
कि गर सनम का नाम लिखा हो शाम पर
कहता यही है फ़कीर - इंतज़ार कर इंतज़ार कर

Thursday, April 8, 2010

मेरा अक्स

गर खुदा ने कभी मुझसे कहा होता...
रुखसत हो तू हो फारिग अपनी कलम से
मैं कहता ऐ-खुदा
ये कलम है मेरी ज़िन्दगी मेरी तमन्ना
कि ना कर इसको जुदा तू मुझसे
न कर मेरे इश्क को रुसवा
गर कहीं मैं हूँ कगार पर
तो यही है वोह मेरा अक्स....