काफी दिनों से मन में गुबार था
तिरंगे की कहानी का अम्बार था
कि सोचा बहुत कैसे कहूँ
लेकिन दर्द ऐसा है कब तक सहूँ
हुआ कुछ यूँ कि तिरंगा मिला सपने में
कहानी थी उसकी इतनी सर्द
ना थी उसमें हद्द
अब कैसे सहूँ में ये दर्द
तिरंगा खुश होता गर
उसे शहीद पर चढ़ाया जाए
उसे लाल किले कि प्राचीर पर फहराया जाए
उसे आजादी का परचम बनाया जाए
तिरंगा दुखी है क्योंकि
उसे भ्रष्ट नेताओं पर लहराया जाता है
उसे गुंडे बदमाशों कि गाडी पर पाया जाता है
उसे सरे आम बेईज्ज़त किया जाता है
कहना है तिरंगे का कुछ यूँ
कि उसे हर घर पर लहराना है
उसे हमारे दिलों में बस जाना है
उसे जात पात से परे जाना है
चाह है उसकी उस पुष्प सी
कि उस पथ पर दें उसको फहरा
मातृभूमि की सेवा में
जिस पथ चले वीर अनेक
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आखिरी कुछ पंक्तियाँ श्री माखनलाल चतुर्वेदी कि कविता - "पुष्प की अभिलाषा" से प्रेरित हैं|
This Blog is collection of my poems that come to my mind on the situational feelings / thoughts that cross through my mind. They are either based on real life event or are based on inspirational line from my readings. They are just the work of art & have No connection to My personal Life in General. 20/11/2012 - Even though I had stated that my poems are just work of art, but some of my poems have been Presented Negatively so I have taken them off
Tuesday, March 9, 2010
Sunday, March 7, 2010
वक़्त नहीं
आज के दौर में हर किसी को बहुत कुछ पाने कि चाह है और इस चाह में उन्हें अपनों का ध्यान नहीं, ना ही उनके पास वक़्त है अपनो के लिए| इस कविता में कवी ने उसे बड़े ही नायब तरीके से ज़ाहिर किया है| ये कविता किसने लिखी ये मुझे इल्म तो नहीं, लेकिन ये नायाब कविता में आपके लिए यहाँ लिख रहा हूँ| मुझे ये कविता किसी मित्र ने भेजी है....
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हर ख़ुशी है लोगों के दमन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं
माँ कि लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
सारे नाम मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं
गैरों कि क्या बात करें
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं
आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक़्त नहीं
पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े
कि थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसासों कि क्या कद्र करें
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
कि हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी वक़्त नहीं.......
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हर ख़ुशी है लोगों के दमन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं
माँ कि लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
सारे नाम मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं
गैरों कि क्या बात करें
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं
आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक़्त नहीं
पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े
कि थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसासों कि क्या कद्र करें
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
कि हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी वक़्त नहीं.......
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