Monday, July 4, 2016

कहने को बहुत कुछ था

कहने को बहुत कुछ था 
मगर वो सुन नहीं पाये 
आये थे मेरे दर पर मिलने 
मगर मिल नहीं पाये 

हमने सोचा कि गुफ्तगूं करेंगे 
मगर फिर खामोश ही रह गए 
कहने को बहुत कुछ था 
मगर वो सुन नहीं पाये 

अंदाज़ वो अपने अब देखते हैं 
आईने में अब खुद से छुपकर 
जुबां पर उनके लफ्ज़ आते हैं 
कहते हैं वो अब खुद से छुपकर 

कहने को जो कुछ था 
हलक में ही रहा गया 
वो आये थे मेरे दर पर 
मगर अश्कों से मेरे बह गए 

एक अजनबी से आये थे मिलने
दर पर मेरे वो लड़खड़ाते 
सेहरा के भीगी रेत पर 
मेरे ही अश्कों से ढह गए 

कहने को बहुत कुछ था
मगर दर्द की तन्हाइयों सा खो गया 
आये थे वो मुझे कुछ कहने सुनने
मगर अश्कों से मेरे बह गए 

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