Friday, February 14, 2020

कुपित कुटिल भगवान

जीवन की कुछ अपनी ही गाथा है 
इसकी पहेलियाँ सागरमाथा है
तुम चाहे जितना भी जतन करो
यह कहेगा छलनी से जल भरो

जीवन की डोर है भगवान के हाथों में 
कहते फिर भी है कि भाग्य है कर्मों में 
फिर क्यों गीता के अध्याय में क्यों है 
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन 

हर समय जीवन ज्ञान क्यों है देता 
कलयुग है, नहीं है यह युग त्रेता 
जीवन में कर्म जब सभी हैं करते 
भगवान फिर कुछ की झोली ही क्यों भरते

जीवन की यह पहेली है बहुत जटिल 
क्या कलयुग में भगवान भी हो गया कुटिल 
क्या वह भी अब हो चला है भ्रस्ट 
क्या उसका मन्त्र है जो चढ़ाएगा वही पाएगा 

अजब पहेली है गजब की है गाथा 
सुलझाना इसे है जैसे चढ़ना हो सागरमाथा 
जतन लाख कर लो फिर भी उसे नहीं मानना 
कुपित कुटिल भगवान से है अब तुम्हारा सामना 

Monday, November 11, 2019

Selfish or Self Centered

What should be you 
a selfish person
or
a self centered one

For you 
I have to be lonely
with you also
I am lonely

Without you also
I am lonely
Why is it always
About you

What shall I call you
a selfish person
for whom I cry alone
and spend sleepless nights

Or should I call you
a self centered person
for whom I spend
most of my time in discomfort

What would you get from here
What is it that you want 
Why you would not accept
In God's mercy life exists